‘ध्यान’– क्यों और कैसे, How to Meditate

Meditation Methods: What Is Orgasmic Meditation And How Can It Help Improve

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम सब खुशियों के पीछे भाग रहे हैं । एक विद्यार्थी अच्छें नंबरों से पास होने के लिए चिंतित रहता है, वह पास हो जाता है, पर खुशी नही होती, चिंता होती है, सोचता है जब नौकरी लग जाएगी तो खुशियां मिलेगी, नौकरी भी मिल जाती है, फिर भी वह आगे सोचता है ,प्रमोशन होने पर खुशिया मिलेगी पर उसे और आगे की चिंता होती है । वह हमेशा भविष्य की खुशियॉं पाने में लगा रहता है और वर्तमान की खुशियों को व्यर्थ जाने देता है, वह कभी यह नहीं समझ पाता कि खुशियॉं कहीं बाहर नहीं , किसी भविष्यव में नहीं बल्कि अभी है, यहीं है, उसके अंदर है, उसके अंतर्मन की शांति मे है, और इस खुशी को लगातार महसूस कराने वाला माध्यम ही ध्यान है । योग का अर्थ है – आत्माा को परमात्मा से जोड़ना । ध्यान में जाकर ही इस कार्य को किया जा सकता है ।



आज योग और ध्यान (Meditation) बहुत ही सामान्य शब्द हो गए हैं । हम सभी इससे भली भांति परिचित हैं और हममें से काफी लोग योग करते भी है । टी.वी. और इंटरनेट ने इसमें काफी सहायता की है । पर अक्सर यही देखने मे आता है कि हम इसकी शुरुआत तो जोर-शोर से करते हैं पर धीरे-धीरे इस उत्साह में कमी होती जाती है ओर हम इसे त्याग कर सुबह की सैर, दौड़, जिम जाना आदि शुरु कर देते है, जिसमें थोड़ा नयापन और आधुनिकता से जुड़ाव महसूस होता है । आमतौर पर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम ध्यान करते समय बोरियत का अनुभव करने लगते हैं, बोरियत इसलिए क्योंकि कुछ नया नहीं, कुछ रोचक नहीं, कुछ मसालेदार नही । पर यकीन मानिए इससे रोचक, मजेदार और अभूतपूर्व उल्लास आपको कहीं नहीं मिल सकता, बशर्ते आपको पता हो कि करना क्या है, और कैसे है । ध्यान लगाने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आपका शरीर बेजान या मृत हो गया है जैसे नींद में होता है। यह ध्यातव्य है – “निद्रा अचेतन ध्यान है और ध्यान सचेतन निद्रा (Sleep is unconscious meditation and meditation is conscious sleep)।”
संत कबीरदास ने कहा है – “ तेरा साई तुज्झ मे, ज्यों पुहुपन मे वास ।“
ज्ञानमार्गी शाखा के इतने बड़े संत यह बात यूं ही नहीं कह गए हैं। सच है हमारे शरीर के अंदर विराजमान आत्मा, उस परमात्मा का ही एक अंश है, तो जब परमात्मा सर्वज्ञ हैं, सर्वव्यापी हैं, सर्वशक्तिशाली हैं, तो हम क्यों नहीं। जिस प्रकार हीरे का एक टुकड़ा भी परमाणु सरंचना में बड़े हीरे के समान ही होगा, ठीक वैसे ही उस परमात्मा की शक्तियाँ भी हमारे अंदर है, जरूरत है उसे जानने की, जिसने जाना वो ही उसका उपयोग कर सकता है, अन्यथा एक अज्ञानी की तरह वह हीरे को बस एक चमकदार पत्थर समझकर फेंक देगा। इन शक्तियों को ध्यान मे जाकर ही जाना जा सकता है।
ध्यान में जाने के लिए हमें बाहरी दुनिया के शोरगुल से हटकर अपने अन्तर्मन की आवाज को सुनना होगा। अब अन्तर्मन की आवाज कैसे सुनी जाय, बहुत आसान है, अगर हम बाहर की आवाजों को सुनना बंद कर दे तो जो आवाज रह जाएगी वही अन्तर्मन की आवाज है और इसे सुनना ही ध्यान या समाधी है। किन्तु बाहर की आवाज के साथ-साथ कुछ आवाजें या कहिए शोरगुल हमारे अंदर भी चल रही होती है। आपने आँख और कान तो बंद कर लिया पर दिमाग का सोचना अब भी जारी है- “कल ऑफिस जल्दी जाना है, घर का राशन खत्म हो गया, पत्नी को आज बाहर खाने पर ले जाना है “ आदि आदि बातें जो हमारा ध्यान अपनी ओर भटकाती है किन्तु इसे दूर करना भी कठिन नहीं। जब आप अपने कान बंद करते है, तो आपको दो आवाजें सुनाई देगी, एक आपके धड़कन की और दूसरी साँसो की । इन दो के अलावा एक तीसरी आवाज भी है और हमे अपना ध्यान उसी आवाज की ओर केन्द्रित करना है । यह आवाज बिलकुल झिंगुर की तरह होती है, यकीन नहीं आता, तो आप करके देखियेगा । धीरे धीरे आपको अन्य आवाज़े भी सुनाई देगी जो आरंभ मे तो तेज न होने के कारण सुनाई नहीं देगी पर जैसे- जैसे आप ध्यान करते जाएंगे ये आवाज़े स्पष्ट होती जाएंगी, कभी आप धीमी गति से बह रहे नदी के जल प्रवाह की आवाज सुनेंगे तो कभी रिमझिम गिरती बारिश के बूंदों की । वे सारी आवाजें जो आप बाहर की दुनिया मे सुनते है, आप को अपने अंदर भी सुनाई देंगी और धीरे धीरे कब आप आत्म- अनुभूति (Self Realization) की ओर कदम बढ़ा चुके होंगे आपको पता भी नहीं चलेगा।

अब हम ध्यान लगाने की विधि देखेंगे । पर याद रहे, ध्यान मे जाना एक मजेदार कार्य होना चाहिए ना की एक यातना देने वाला (Meditation should not be a torture, it should be a fun)। जैसे आपने कभी सुना होगा , दोनों भौहों के बीच ध्यान लगाना चाहिए किन्तु थोड़ी देर बाद ही इससे सर दर्द होने लगता है और हम कुछ मिनट बाद ऊब जाते है ।

ध्यान लगाने के लिए निम्न प्रक्रिया का पालन करें :-
1. एक आरामदायक व शांत जगह का चुनाव करें , जो कोलाहल से दूर हो और जहाँ आप आराम से बैठ सकें । आप पालथी मारकर भी बैठ सकते या फिर कुर्सी पर बैठे बैठे भी ध्यान लगा सकते है।
2. आँखें बंद हो और कानो मे ईयर प्लग लगाए किसी भी दवा दुकान मे 15 रुपये की कीमत मे नारंगी रंग का ईयर प्लग खरीद लें,न मिलने पर रुई का उपयोग भी कर सकते हैं।
3. दस लंबी साँसे ले धीरे धीरे, आराम से और गहरी साँस ले और उसी तरह आराम से साँस छोंड़े । साँस छोड़ते समय दस से एक की उल्टी गिनती गिनें, याद रहे गिनती सिर्फ साँसे छोड़ते समय गिने, लेते समय नहीं।

4. अपने अंदर की आवाज पर ध्यान केन्द्रित करें मस्तिष्क में चल रही आवाजों को सिर्फ सुनें, उनका विश्लेषण कदापि न करे, सुननें की चाहत भी न करें, वो खुद सुनाई देंगी, मन शांत रखें।
5. अपनी सोच को भटकने न दें अगर कभी सोच भटकती है, तो परेशान न हो, खीझे नहीं, प्यार से मुस्कुराकर उन्हे वापस अपनी ओर ले आइये। वैसे भी एक बार आपको मस्तिष्क में चल रही आवाज़े सुनाई देने लगी तो खुद –ब-खुद अपना का ध्यान वापस वहीं आ जाएगा और आपका दिमाग बाहरी बातों को सोचना बंद कर देगा।
ये तो रहा ध्यान का तरीका, पर इसका उचित प्रतिफल जल्दी पाने के लिए आपको अपने शरीर को निर्मल और स्वच्छ करना होगा । दो तरह से यह किया जा सकता है, पहला अपने शरीर को बाहर से निर्मल करना होगा( detoxification), इसके लिए आप Oil Pulling, जिसका गूगल पर विस्तार से उल्लेख है, कर सकते हैं, सुबह उठकर हल्के गरम जल मे नींबू-नमक डालकर पिये, नियमित रूप से व्यायाम करिए, शारीरिक खेलो में हिस्सा लीजिये, जितना हो सके अपने आप को सक्रिय रखिए। ये तो हुआ बाहर से स्वच्छ रखना, शरीर की अंदरूनी सफाई यानि विचारों को स्वच्छ रखने के लिए, अच्छी पुस्तकें पढें, मंदिर , मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा जहां भी आपके मन को शांति मिलती हो, वहाँ जाएँ, अच्छी विचारधारा वाले लोगों के साथ मिलें अच्छी भाषा का व्यवहार करें, अच्छा सोचें। इससे आपको अपना लक्ष्य प्राप्त करने मे काफी सहायता मिलेगी।
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